पंडित बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय “प्रेमधन” ़ (१८९५-१८६४)
बदरीनारायण चौधरी ने अपने पत्र “आनन्द कादम्बिनी! और ‘नागरी नीरद’ में अनेक लेख लिखे हैं। वे भारतेन्दु के विचारों क पूर्ण समर्थक थे। उन्होंने अपने कई लेखों में अंग्रेजी नीति का भंडोफोड़ किया है। उन्होंने साफ कहा है कि अंग्रेजी राज्य में कर के कारण जो क्लेश किसानों को अब सहना पड़ा है वह पहले मुसलमानों के राज्य में न था।
“आनन्द कादमबिनी’ का “नवीन संवत्सर’ तो मानों उनकी कूटनीति के पर्दाफाश के निमित्त ही लिखा गया था। अंग्रेजों की कथनी और करनी का भेद उसमें अच्छी तरह उद्घाटित किया गया है। पर उनके गद्य में रीतितत््व कम नहीं हैं। यह तत्त्व उनकी रहन-सहन, वेषभूषा आकृति-प्रकृति में: ही था और साहित्य सेवा को उन्होंने स्वांतःसुखाय स्वीकार किया था।
ऋतुवर्णन सम्बन्धी निबन्ध में नायिकाओं की मनोदशाओं का वर्णन उनकी उसी मनोवृत्ति का सूचक है। भाषा सम्बन्धी अलंकृति रईसों की अलंकृति ही थी। सानुप्रास का चामत्कारिक पदावली पूर्ण भाषा की ओर उनकी विशेष रुझान थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने उनके पेंचीलें मजमून की जो शिकायत की है वह यथार्य है।
इनके अतिरिक्त हरिश्चन्द्र उपाध्याय, बिनायक शासत्री बेताल, अम्बिकादत्त व्यास, राधाचरण गोस्वामी, मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, भीमसेन शर्मा आदि ने भी हिन्दी निवन्ध के विकास में यथाशक्ति योग दिया
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