नाटक नाटक दृश्य-श्रव्य काव्य है, इसलिए यह लोक-चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। जिस प्रथम प्रकरण का उल्लेख नाट्यशाखत्र में आता है उसके लेखन और अभिनय का मूल प्रेरक है–लोक चेतना। भारतेन्दु तथा उनके सहयोगियों ने इस चेतना के प्रसार के लिए नाटक को अत्यन्त उपयोगी माध्यम समझा। इसलिए स्वाभाविक था कि नाटकों में उस युग की अनेक समस्याओं को अभिव्यक्त ...
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